सोलह सोमवार व्रत: पूजा विधि, कथा एवं उद्यापन विधि
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सोलह सोमवार व्रत का महत्व और उद्देश्य
सोलह सोमवार व्रत भगवान शिव की कृपा प्राप्ति हेतु किया जाने वाला अत्यंत प्रभावशाली व्रत है। यह धारणा गलत है कि यह केवल विवाहित स्त्रियों द्वारा अच्छे वर की प्राप्ति हेतु किया जाता है। इस व्रत को माता पार्वती ने शिवजी को पुनः प्राप्त करने हेतु किया, वहीं पुजारी ने अपने कोढ़ के रोग से मुक्ति के लिए, कार्तिकेय ने मित्र मिलन के लिए, ब्राह्मण ने विवाह के लिए, और राजकुमारी ने पुत्र प्राप्ति के लिए यह व्रत किया।
इन सभी उदाहरणों से स्पष्ट है कि सोलह सोमवार व्रत किसी भी शुभ इच्छा की पूर्ति हेतु किया जा सकता है – जैसे पुत्र प्राप्ति, रोग निवारण, समृद्धि, गृहस्थ सुख, मानसिक शांति आदि। यह व्रत स्त्री या पुरुष, विवाहित या अविवाहित – सभी के लिए फलदायक है।
व्रत कब और कैसे करें
सोलह सोमवार व्रत श्रावण मास के किसी भी सोमवार से आरंभ किया जा सकता है। यदि पहला सोमवार न मिल सके तो दूसरे या तीसरे सोमवार से भी प्रारंभ करना उचित है। एक बार प्रारंभ करने के बाद 16 सोमवार तक नियमित व्रत करना चाहिए, और 17वें सोमवार को विधिपूर्वक उद्यापन करना चाहिए।
सोलह सोमवार व्रत पूजा विधि (Solah Somwar Vrat Vidhi)

पूजन सामग्री:
- शिवलिंग या शिवजी की मूर्ति
- बेलपत्र, धतूरा, भांग
- सफेद पुष्प
- सफेद वस्त्र, जनेऊ
- गंगाजल, शुद्ध जल, दूध, दही, घी, शहद, चीनी (पंचामृत हेतु)
- सफेद चंदन, अष्टगंध, रोली, इत्र
- धूप, दीप, कपूर
- फल, ऋतुफल, नारियल
- नैवेद्य: गेहूं का आटा, घी और गुड़ मिलाकर बनी पंजीरी
व्रत का संकल्प विधि:
स्नान के पश्चात शुद्ध वस्त्र धारण कर पूजा स्थल पर बैठें। हाथ में जल, अक्षत, सुपारी, पान, और दक्षिणा लेकर संकल्प करें:
संकल्प मंत्र:
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य ब्रह्मणः द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे कलीयुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत पुण्यप्रदेशे अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुकनाम अहं शिवप्रसादसिद्ध्यर्थं सोलह सोमवार व्रतं अहम करिष्ये।
यहाँ “अमुक” स्थानों पर स्थान, गोत्र, नाम आदि उच्चारण करें।
आवाहन एवं पूजन विधि:
- आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर भगवान शिव का आवाहन करें:
आवाहन मंत्र:
ॐ शिवशङ्करमीशानं त्रिनेत्रं पंचवक्त्रकम् ।
उमासहितं देवं शिवं आवाहयाम्यहम् ॥
- शिवलिंग या मूर्ति पर जल एवं पंचामृत से अभिषेक करें।
- फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं और वस्त्र अर्पित करें।
- चंदन से तिलक करें, फिर अक्षत, पुष्प, बेलपत्र, धतूरा, भांग अर्पण करें।
- धूप, दीप दिखाएं, नैवेद्य अर्पित करें।
- शिव चालीसा, शिव महिम्न स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या ॐ नमः शिवाय का जप करें।
- आरती करें – दीप और कपूर से।
प्रदोषकाल में विशेष पूजन करना शुभ माना गया है। पूजा के बाद पंजीरी को तीन भागों में बाँटें:
- एक भाग भगवान शिव को अर्पित करें
- दो भागों को प्रसाद रूप में वितरित करें और स्वयं भी ग्रहण करें।
सोलह सोमवार व्रत की कथा
एक बार शिवजी और माता पार्वती मृत्यु लोक पर घूम रहे थे। घूमते-घूमते वो विदर्भ देश के अमरावती नामक नगर में आये। उस नगर में एक सुंदर शिव मन्दिर था, इसलिए महादेवजी पार्वतीजी के साथ वहाँ रहने लग गये।
एक दिन बातों-बातों में पार्वतीजी ने शिवजी को चौसर खेलने को कहा। शिवजी राजी हो गये और चौसर खेलने लग गये।
उसी समय मंदिर का पुजारी दैनिक आरती के लिए आया। पार्वती ने पुजारी से पूछा, बताओ हम दोनों में चौसर में कौन जीतेगा? वो पुजारी भगवान शिव का भक्त था और उसके मुंह से तुरन्त निकल पड़ा, “महादेव जी जीतेंगे।”
चौसर का खेल खत्म होने पर पार्वती जी जीत गयीं और शिवजी हार गये। पार्वती जी ने क्रोधित होकर उस पुजारी को श्राप देना चाहा। तभी शिवजी ने उन्हें रोक दिया और कहा कि यह तो भाग्य का खेल है, उसकी कोई गलती नहीं है। फिर भी माता पार्वती ने उसे कोढ़ी होने का श्राप दे दिया और उसे कोढ़ हो गया।
काफी समय तक वह कोढ़ से पीड़ित रहा। एक दिन एक अप्सरा उस मंदिर में शिवजी की आराधना के लिए आयी और उसने उस पुजारी के कोढ़ को देखा। अप्सरा ने उस पुजारी को कोढ़ का कारण पूछा तो उसने सारी घटना उसे सुना दी। अप्सरा ने उस पुजारी से कहा, तुम्हें इस कोढ़ से मुक्ति पाने के लिए सोलह सोमवार व्रत करना चाहिए। उस पुजारी ने व्रत करने की विधि पूछी।
अप्सरा ने बताया, सोमवार के दिन नहा धोकर साफ़ कपड़े पहन लेना और आधा किलो आटे से पंजीरी बना देना। उस पंजीरी के तीन भाग करना। प्रदोष काल में भगवान शिव की आराधना करना। इस पंजीरी के एक तिहाई हिस्से को आरती में आने वाले लोगों को प्रसाद के रूप में देना। इस तरह सोलह सोमवार तक यही विधि अपनाना। सत्रहवें सोमवार को एक चौथाई गेहूं के आटे से चूरमा बना देना और शिवजी को अर्पित कर लोगों में बांट देना। इससे तुम्हारा कोढ़ दूर हो जायेगा।
इस तरह सोलह सोमवार व्रत करने से उसका कोढ़ दूर हो गया और वह खुशी-खुशी रहने लगा।
एक दिन शिवजी और पार्वती जी दुबारा उस मंदिर में लौटे और उस पुजारी को एकदम स्वस्थ देखा। पार्वती जी ने उस पुजारी से स्वास्थ्य लाभ होने का राज पूछा। उस पुजारी ने कहा उसने 16 सोमवार व्रत किए जिससे उसका कोढ़ दूर हो गया। पार्वती जी इस व्रत के बारे में सुनकर बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने भी यह व्रत किया और इससे उनका पुत्र वापस घर लौट आया और आज्ञाकारी बन गया।
कार्तिकेय ने अपनी माता से उनके मानसिक परिवर्तन का कारण पूछा जिससे वह वापस घर लौट आये। पार्वती ने उन्हें इन सब के पीछे सोलह सोमवार व्रत के बारे में बताया। कार्तिकेय यह सुनकर बहुत खुश हुए।
कार्तिकेय ने अपने विदेश गये ब्राह्मण मित्र से मिलने के लिए उस व्रत को किया और सोलह सोमवार होने पर उनका मित्र उनसे मिलने विदेश से वापस लौट आया। उनके मित्र ने इस राज का कारण पूछा तो कार्तिकेय ने सोलह सोमवार व्रत की महिमा बताई।
यह सुनकर उस ब्राह्मण मित्र ने भी विवाह के लिए सोलह सोमवार व्रत रखने के लिए विचार किया। एक दिन राजा अपनी पुत्री के विवाह की तैयारियाँ कर रहा था। कई राजकुमार राजा की पुत्री से विवाह करने के लिए आये। राजा ने एक शर्त रखी कि जिस भी व्यक्ति के गले में हथिनी वरमाला डालेगी, उसके साथ ही उसकी पुत्री का विवाह होगा।
वो ब्राह्मण भी वहीं था और भाग्य से उस हथिनी ने उस ब्राह्मण के गले में वरमाला डाल दी और शर्त के अनुसार राजा ने उस ब्राह्मण से अपनी पुत्री का विवाह करा दिया।
एक दिन राजकुमारी ने ब्राह्मण से पूछा, आपने ऐसा क्या पुण्य किया जो हथिनी ने दुसरे सभी राजकुमारों को छोड़कर आपके गले में वरमाला डाली?” उसने कहा, “प्रिये, मैंने अपने मित्र कार्तिकेय के कहने पर सोलह सोमवार व्रत किए थे, उसी के परिणामस्वरूप तुम लक्ष्मी जैसी दुल्हन मुझे मिली।
राजकुमारी यह सुनकर बहुत प्रभावित हुई और उसने भी पुत्र प्राप्ति के लिए सोलह सोमवार व्रत रखा। फलस्वरूप उसके एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ। जब पुत्र बड़ा हुआ तो उसने पूछा, माँ, आपने ऐसा क्या किया जो आपको मेरे जैसा पुत्र मिला? उसने भी पुत्र को सोलह सोमवार व्रत की महिमा बतायी।
यह सुनकर उसने भी राजपाट की इच्छा के लिए यह व्रत रखा। उसी समय एक राजा अपनी पुत्री के विवाह के लिए वर तलाश कर रहा था। तो लोगों ने उस बालक को विवाह के लिए उचित बताया। राजा को इसकी सूचना मिलते ही उसने अपनी पुत्री का विवाह उस बालक के साथ कर दिया। कुछ सालों बाद जब राजा की मृत्यु हुई तो वह राजा बन गया क्योंकि उस राजा के कोई पुत्र नहीं था।
राजपाट मिलने के बाद भी वह सोमवार व्रत करता रहा। एक दिन सत्रहवें सोमवार व्रत पर उसकी पत्नी को भी पूजा के लिए शिव मंदिर आने को कहा लेकिन उसने खुद आने के बजाय दासी को भेज दिया।
ब्राह्मण पुत्र के पूजा खत्म होने के बाद आकाशवाणी हुई, तुम अपनी पत्नी को अपने महल से दूर रखो, वरना तुम्हारा विनाश हो जाएगा। ब्राह्मण पुत्र यह सुनकर बहुत आश्चर्यचकित हुआ।
महल वापस लौटने पर उसने अपने दरबारियों को भी यह बात बताई। तो दरबारियों ने कहा कि जिसकी वजह से ही उसे राजपाट मिला है, वह उसी को महल से बाहर निकालेगा? लेकिन उस ब्राह्मण पुत्र ने उसे महल से बाहर निकाल दिया।
वह राजकुमारी भूखी-प्यासी एक अनजान नगर में आयी। वहाँ पर एक बूढ़ी औरत धागा बेचने बाजार जा रही थी। जैसे ही उसने राजकुमारी को देखा तो उसने उसकी मदद करते हुए उसके साथ व्यापार में मदद करने को कहा। राजकुमारी ने भी एक टोकरी अपने सिर पर रख ली। कुछ दूरी पर चलने के बाद एक तूफान आया और वह टोकरी उड़कर चली गयी। अब वह बूढ़ी औरत रोने लग गई और उसने राजकुमारी को मनहूस मानते हुए चले जाने को कहा।
उसके बाद वह एक तेली के घर पहुंची। उसके वहाँ पहुंचते ही सारे तेल के घड़े फूट गये और तेल बहने लग गया। उस तेली ने भी उसे मनहूस मानकर वहाँ से भगा दिया। उसके बाद वह एक सुंदर तालाब के पास पहुंची और जैसे ही पानी पीने लगी उस पानी में कीड़े चलने लगे और सारा पानी धुंधला हो गया।
अपने दुर्भाग्य को कोसते हुए उसने गंदा पानी पी लिया और पेड़ के नीचे सो गयी। जैसे ही वह पेड़ के नीचे सोयी, उस पेड़ की सारी पत्तियाँ झड़ गईं। अब वह जिस पेड़ के पास जाती, उसकी पत्तियाँ गिर जाती थीं।
ऐसा देखकर वहाँ के लोग मंदिर के पुजारी के पास गये। उस पुजारी ने उस राजकुमारी का दर्द समझते हुए उससे कहा, बेटी, तुम मेरे परिवार के साथ रहो। मैं तुम्हें अपनी बेटी की तरह रखूंगा, तुम्हें मेरे आश्रम में कोई तकलीफ नहीं होगी।
इस तरह वह आश्रम में रहने लग गई। अब वह जो भी खाना बनाती या पानी लाती, उसमें कीड़े पड़ जाते। ऐसा देखकर वह पुजारी आश्चर्यचकित होकर उससे बोला, बेटी, तुम पर ये कैसा कोप है जो तुम्हारी ऐसी हालत है?
उसने वही शिवपूजा में ना जाने वाली कहानी सुनाई। उस पुजारी ने शिवजी की आराधना की और उसको सोलह सोमवार व्रत करने को कहा जिससे उसे ज़रूर राहत मिलेगी।
उसने सोलह सोमवार व्रत किया और सत्रहवें सोमवार पर ब्राह्मण पुत्र उसके बारे में सोचने लगा, वह कहाँ होगी, मुझे उसकी तलाश करनी चाहिए। इसलिए उसने अपने आदमी भेजकर अपनी पत्नी को ढूंढने को कहा।
उसके आदमी ढूंढते-ढूंढते उस पुजारी के घर पहुँच गये और उन्हें वहाँ राजकुमारी का पता चल गया। उन्होंने पुजारी से राजकुमारी को घर ले जाने को कहा, लेकिन पुजारी ने मना करते हुए कहा, अपने राजा को कहो कि खुद आकर इसे ले जाए।
राजा खुद वहाँ पर आया और राजकुमारी को वापस अपने महल लेकर आया।
इस तरह जो भी यह सोलह सोमवार व्रत करता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
व्रत का उद्यापन विधि
सोलह सोमवार व्रत पूर्ण होने पर 17वें सोमवार को विधिपूर्वक उद्यापन करना चाहिए।

उद्यापन विधि:
- प्रातः काल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- मंडप व वेदी सजाकर चार द्वारों का निर्माण करें।
- वेदी पर कलश स्थापना करें जिसमें जल, सुपारी, सिक्का, अक्षत और आम का पत्ता रखें।
- कलश पर नारियल रखें और पंचाक्षर मंत्र से भगवान शिव की स्थापना करें।
- पंचामृत से शिव का स्नान कराएं और पूजन करें।
- हवन करें – घी, तिल, गुड़, जौ, आदि से।
- आचार्य को दक्षिणा, वस्त्र, अन्न और गाय का दान करें।
- ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भी प्रसाद रूप में भोजन करें।
यह सोलह सोमवार व्रत विधि (Solah Somwar Vrat Vidhi) शास्त्र-सम्मत एवं परंपरागत रीति से की जाए तो यह न केवल भगवान शिव की कृपा दिलाती है बल्कि संपूर्ण जीवन में सुख, शांति और उन्नति का द्वार भी खोलती है।