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भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं । जिस तिथि को माता – पिता का देहांत होता है , उसी तिथी को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है । धर्मसिन्धु में श्राद्ध के महत्त्व के विषय में एक प्रसंग आया है कि यम वर्षाकाल के अन्त में
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तर्पणका फलएकैकस्य तिलैर्मिश्रांस्त्रींस्त्रीन् दद्याजलाञ्जलीन् ।यावज्जीवकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति ।।एक – एक पितर को तिलमिश्रित जल की तीन – तीन अञ्जलियाँ प्रदान करे । ( इस प्रकार तर्पण करने से ) जन्म से आरम्भ कर तर्पण के दिन तक किये पाप उसी समय नष्ट हो जाते हैं ।तर्पण न करने से प्रत्यवाय ( पाप ) –ब्रह्मादिदेव एवं
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नवरात्रि हिंदुओ का एक प्रमुख पर्व है , नवरात्रि संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ होता है नव राते। इन नव रातो में देवी के नव अलग अलग रूपो का पूजन होता है ।नवरात्रि में देवि का पूजन कलश स्थापन कर के करना चाहिए तथा अखंड ज्योति नव दिन तक जलानी चाहिए।पुरे नव दिन की
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